“कुछ कहानियाँ पूरी नहीं होती, फिर भी हमेशा याद रहती हैं।”
बिकाश और पूजा की मुलाकात एक छोटे से कॉलेज में हुई थी। पहली नजर में कुछ खास नहीं था — बस एक सामान्य "हाय-हैलो" वाला रिश्ता। लेकिन वक्त के साथ बातचीत बढ़ी, दोस्ती गहरी हुई, और कब दिलों में हलचल होने लगी, उन्हें पता ही नहीं चला।
पहली बारिश, पहली मुस्कान
एक दिन पहली बारिश में पूजा भीगते हुए कॉलेज आई थी। बिकाश ने अपनी छतरी शेयर की और कहा —
"बीमार मत पड़ जाना, तुम्हारी मुस्कान बहुत प्यारी है।"
उस एक लाइन ने पूजा के दिल में कुछ जगह बना ली।
धीरे-धीरे दोनों का रिश्ता दोस्ती से बढ़कर कुछ और बनता गया। लेकिन दोनों ने कभी कुछ कहा नहीं। बस इशारों, बातों, और खामोशियों में सब कुछ कह दिया।
मोड़: प्यार अधूरा रह गया
कॉलेज खत्म हुआ, और अब करियर की दौड़ शुरू हो गई। पूजा का परिवार सख्त था, उन्हें शादी के लिए तैयार करना आसान नहीं था।
एक दिन पूजा ने बिकाश को कॉल किया और बस इतना कहा:
"मैं चाहकर भी तुझे अपना नहीं बना सकती बिकाश... पापा ने मेरा रिश्ता तय कर दिया है। माफ करना..."
फोन कट गया... और साथ ही बिकाश का सपना भी।
अधूरा लेकिन अमर
वो शादी में गया भी नहीं। बस एक चुप्पी ओढ़कर जिंदगी से समझौता कर लिया। पूजा ने भी शादी कर ली, लेकिन कभी वो हँसी दोबारा न आई जो बिकाश के साथ होती थी।
वक्त बीत गया, लेकिन दिल का वो कोना आज भी उन्हीं यादों से भरा है। बिकाश ने कभी शादी नहीं की। पूजा के नाम की एक NGO शुरू की — "Puja Smiles Foundation", जहाँ वो गरीब बच्चों को पढ़ाता है।
आखिर में...
अधूरा प्यार मुकम्मल तो नहीं होता, लेकिन वो एहसास कभी खत्म नहीं होता।
बिकाश और पूजा की कहानी अधूरी रहकर भी पूरी लगती है — क्योंकि उन्होंने एक-दूसरे को दिल से चाहा, भले ही किस्मत साथ नहीं दे सकी।
अधूरा प्यार – पार्ट 2: 20 साल बाद की मुलाकात
पृष्ठभूमि:
20 साल बीत चुके थे। पूजा अब दो बेटियों की माँ है। उसकी ज़िंदगी में सब कुछ था — पति, घर, सम्मान — पर जो नहीं था, वो था सुकून।
बिकाश अब एक समाजसेवी है, जिसने “Puja Smiles Foundation” नाम की संस्था शुरू की — अनाथ बच्चों की पढ़ाई, इलाज और सहारा देने के लिए।
लेकिन किस्मत को एक और अध्याय लिखना था।
मिलन जो अचानक हुआ...
एक दिन पूजा अपनी बेटी आस्था के साथ एक NGO विज़िट पर गई। वहाँ के बोर्ड पर उसकी नजर एक नाम पर पड़ी —
"Founder: Bikash Kumar"
धड़कन रुक गई...
वो अंदर गई, और सामने खड़ा था वही चेहरा — थोड़ा बदल चुका था, पर आँखें वैसी ही थीं।
> बिकाश ने पूजा को देखा, थोड़ी देर तक कुछ कहा नहीं।
फिर बस इतना बोला:
"कैसी हो, पूजा?"
पूजा की आँखें भर आईं, पर उसने मुस्कुरा कर कहा:
"ठीक हूँ... तुमने बहुत अच्छा काम किया है..."
बातें जो कभी पूरी न हो सकीं...
दोनों ने एक चाय की दुकान पर मुलाकात की। वहां उन्होंने उन सब बातों को याद किया जो अधूरी रह गई थीं।
पूजा बोली:
“तू आज भी अकेला है?”
बिकाश मुस्कुराया:
“अकेला नहीं… बहुत सारे बच्चों का 'बिकाश भैया' हूँ अब।”
> उस दिन पूजा पहली बार खुलकर रोई...
और बिकाश ने पहली बार किसी को गले लगाया बिना डर के...
एक नया अध्याय:
पूजा की बेटी आस्था अब उसी फाउंडेशन की सबसे एक्टिव सदस्य बन चुकी है।
बिकाश के लिए आस्था किसी बेटी से कम नहीं।
और पूजा?
अब हर महीने उस फाउंडेशन में एक दिन बिताती है — खुद से मिलने, अपने अधूरे प्यार से मिलने।
अंत नहीं, शुरुआत है ये...
कभी-कभी अधूरी कहानियाँ ही सबसे खूबसूरत होती हैं।
बिकाश और पूजा का प्यार अब भी अधूरा है — पर अब वो बोझ नहीं, बल्कि प्रेरणा बन चुका है।
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