भाग 1: पहली मुलाकात
कोलकाता की हल्की बारिश और कॉलेज की पहली सुबह — वही दिन था जब देबजीत की नज़र पहली बार रिया पर पड़ी। सादे कपड़ों में, खुले बाल और आँखों में सपने लिए रिया क्लास में आई। देबजीत उसे देखते ही जैसे कुछ भूल सा गया। वो पहली नज़र का जादू था, जिसे शब्दों में बयां कर पाना मुश्किल था।
धीरे-धीरे दोनों एक-दूसरे के दोस्त बन गए। प्रोजेक्ट्स, लाइब्रेरी, और कैंटीन की बातें कब दिल की गहराइयों में बदल गईं, दोनों को पता ही नहीं चला।
भाग 2: कबूल नहीं, फिर भी इकरार
देबजीत रिया से प्यार करता था, लेकिन डरता था — कहीं दोस्ती खो न जाए। रिया भी महसूस करती थी, लेकिन वो अपने परिवार की बंदिशों और समाज की सोच से डरी हुई थी।
एक बार, कॉलेज ट्रिप के दौरान चांदनी रात में देबजीत ने रिया से कहा:
> “अगर कभी तुम्हें लगे कि कोई तुम्हारे साथ उम्र भर चल सकता है... तो मैं इंतज़ार करूँगा।”
रिया बस मुस्कुरा दी — न हां, न ना।
भाग 3: बिछड़ना
कॉलेज खत्म हुआ और ज़िंदगी की असली दौड़ शुरू हुई। रिया की शादी तय हो गई — एक ऐसे इंसान से जो विदेश में रहता था, सफल था... लेकिन शायद प्यार करना नहीं जानता था।
देबजीत ने कुछ नहीं कहा। बस चुपचाप रिया की शादी की खबर सुनकर, अपने कमरे में अकेले एक खत लिखा — जो कभी भेजा नहीं गया।
भाग 4: अधूरी मुलाकात
सालों बाद, एक किताब मेले में दोनों की अचानक मुलाकात हुई।
रिया ने कहा:
> "तुमने कभी कुछ कहा क्यों नहीं?"
देबजीत मुस्कुराया:
> "कहा तो था… पर तुमने कभी सुना ही नहीं।"
रिया की आँखों में नमी थी। देबजीत के पास शब्द नहीं थे। वक्त सब कुछ बदल चुका था… बस उस अधूरे प्रेम को छोड़कर।
अंतिम पंक्तियाँ
कुछ कहानियाँ मुकम्मल नहीं होतीं,
कुछ प्रेम सिर्फ महसूस किए जाते हैं,
देबजीत और रिया की तरह —
जहाँ मोहब्बत थी, लेकिन मुकाम नहीं।
अधूरी प्रेम — भाग 2: फिर भी तुमसे मोहब्बत है
1 साल बाद...
रिया की शादी को एक साल हो चुका था। वो अब मुंबई में रहती थी — एक आलीशान फ्लैट, बड़ी कार, और हर वो चीज़ जो ज़िंदगी को "परफेक्ट" बना सके।
लेकिन... दिल के किसी कोने में एक खालीपन अब भी था।
देबजीत — वही पुराना, पर बदला हुआ
देबजीत अब एक लेखक बन चुका था। उसके लिखे गए छोटे-छोटे लव लेटर्स अब किताबों की शक्ल ले चुके थे।
उसकी किताब का नाम था:
> “जिनसे मोहब्बत की, पर कह न सके।”
किताब मेले में उस दिन रिया ने जब उसका नाम देखा — हाथ काँप उठे।
एक और टकराव — संयोग या किस्मत?
रिया ने उसी मेले में देबजीत को देखा — वही मुस्कान, लेकिन आँखें अब भी थोड़ी उदास।
देबजीत ने भी उसे देखा — एक पल के लिए वक़्त थम सा गया।
रिया ने धीमे से पूछा:
> “अब भी लिखते हो?”
देबजीत मुस्कुराया:
“अब भी महसूस करता हूँ।”
सवालों की बाढ़, जवाब की खामोशी
रिया:
> “अगर मैं उस दिन कह देती कि मुझे भी तुमसे प्यार है… तो क्या होता?”
देबजीत ने उसकी आँखों में देखा और बस इतना कहा:
> “शायद... हम अधूरी कहानी नहीं होते।”
उस दिन, न कोई गिला था, न कोई इल्ज़ाम।
बस एक अधूरी मोहब्बत थी — जो अब भी सांस ले रही थी।
अंत:
रिया चली गई — अपने उसी जीवन में, लेकिन अब हर रात सोने से पहले देबजीत की किताब पढ़ती है।
और देबजीत?
वो अब भी हर नई कहानी में रिया को जीता है।
🖋️ पंक्तियाँ जो रह गईं दिल में:
> "तुम आज भी मेरी मोहब्बत हो,
बस फर्क इतना है...
अब हम मिलने की नहीं,
बिछड़ने की वजह बन चुके हैं।"
अधूरी प्रेम — भाग 3: वो आख़िरी ख़त
🕰️ 5 साल बाद...
देबजीत अब एक प्रसिद्ध लेखक बन चुका था। उसका चेहरा हर लिटरेचर फेस्टिवल में दिखता था।
पर जो नहीं दिखता था... वो था उसकी आँखों में छिपा एक नाम — रिया।
वो नाम अब किताबों के किरदारों में जीता था, लेकिन हक़ीक़त से दूर।
✉️ एक चिट्ठी — पुरानी पहचान से
एक शाम, देबजीत को डाक से एक लिफ़ाफ़ा मिला — बिना किसी भेजने वाले के नाम के।
लिफ़ाफ़ा खोलते ही एक पुराना इत्र उसकी साँसों में घुल गया।
रिया की लिखावट थी। और चिट्ठी में लिखा था:
> प्रिय देबजीत,
शायद यह खत तुम्हें हैरान कर दे...
या शायद तुम अब भी मेरी आवाज़ पहचानते हो हर शब्द में।
तुमने पूछा नहीं, लेकिन मैं बताना चाहती हूँ —
मेरी शादी एक समझौता थी।
एक ऐसी ज़िंदगी, जिसमें सब कुछ है... सिवाय तुम के।
कई बार चाहा कि लौट जाऊँ,
लेकिन तुम्हारे अपनेपन से डर लगता था —
कहीं फिर से खो न दूँ... वो अधूरी सी मोहब्बत।
आज मैं एक बेटे की माँ हूँ, पर एक औरत जो अब भी हर रात तुम्हारी किताब पढ़ते हुए रोती है।
तुमने मुझे कभी रोका नहीं, शायद यही तुम्हारी मोहब्बत थी।
पर जान लो —
मैंने सिर्फ तुम्हें चाहा था... और अब भी चाहती हूँ।
— रिया
😔 उस रात...
देबजीत ने वो चिट्ठी अपने सिरहाने रख ली।
ना जवाब लिखा, ना किसी को बताया।
बस उस रात अपनी डायरी में लिखा:
> "कभी-कभी मोहब्बत लौट भी आती है,
पर तब... जब हम उसे फिर से थाम नहीं सकते।"
💔 अंत नहीं — बस ठहराव
रिया अपनी दुनिया में वापस चली गई, लेकिन अब सुकून था कि उसने कह दिया।
देबजीत ने वो चिट्ठी अपनी नई किताब की पहली पंक्ति बना दी...
📖 अधूरी प्रेम — एक अधूरी सी कहानी, जो पूरी नहीं होनी थी... क्योंकि उसकी ख़ूबसूरती, उसकी अधूरापन ही था।
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